Gorakhpur News: गोरखपुर चिड़ियाघर के बब्बर शेर पटौदी की गुरुवार को कानपुर चिड़ियाघर में इलाज के दौरान मौत हो गई। इस खबर ने कानपुर और गोरखपुर दोनों जगह हड़कंप मचा दिया। पटौदी पिछले एक महीने से बीमार था और उसे बेहतर इलाज के लिए गोरखपुर से कानपुर भेजा गया था। प्रारंभिक जानकारी के अनुसार, उसकी मौत का कारण बर्ड फ्लू हो सकता है, हालांकि इसकी पुष्टि के लिए जांच जारी है। पटौदी की मौत ने चिड़ियाघर प्रशासन और वन्यजीव प्रेमियों को सदमे में डाल दिया है।
पटौदी की कहानी तब और भी भावुक हो जाती है, जब हम उसकी साथी शेरनी मरियम की बात करते हैं। मरियम की 2 अप्रैल 2024 को मौत के बाद से ही पटौदी उदास और गुमसुम रहने लगा था। वह ज्यादातर समय अपने बाड़े के कोने में पड़ा रहता था। दोनों शेर फरवरी 2021 में इटावा लायन सफारी से गोरखपुर चिड़ियाघर लाए गए थे। मरियम और पटौदी की जोड़ी पहले इटावा सफारी में बनी थी, जहां दोनों के बीच गहरा रिश्ता बन गया था। गोरखपुर आने के बाद भी दोनों एक-दूसरे के साथ समय बिताते थे और एक-दूसरे को देखते रहते थे।
पटौदी की उम्र करीब 15 साल थी, जो बब्बर शेर की औसत उम्र (15-16 साल) के बराबर थी। मरियम 17 साल की थी और वह उत्तर प्रदेश की सबसे उम्रदराज शेरनी थी। उम्र बढ़ने के कारण मरियम की तबीयत खराब रहने लगी थी, जिसके बाद उसकी मौत हो गई। मरियम के जाने के बाद पटौदी का व्यवहार पूरी तरह बदल गया। वह पहले की तरह सक्रिय नहीं रहा और चिड़ियाघर के कर्मचारियों ने देखा कि वह अकेलेपन में समय बिताने लगा।
पटौदी की सेहत भी पिछले कुछ समय से ठीक नहीं थी। उसकी खुराक आधी हो गई थी। सामान्य तौर पर एक बब्बर शेर गर्मियों में 10 से 12 किलो मांस खाता है, लेकिन पटौदी केवल 4 से 5 किलो मांस ही खा पा रहा था। उम्र के कारण वह हड्डी वाला मांस नहीं तोड़ पाता था, इसलिए चिड़ियाघर प्रशासन उसे बिना हड्डी वाला मांस दे रहा था। जब उसकी हालत और बिगड़ने लगी, तो गोरखपुर के शहीद अशफाक उल्ला खां प्राणि उद्यान के अधिकारियों ने उसे बेहतर इलाज के लिए कानपुर चिड़ियाघर भेजने का फैसला किया।
पटौदी की कहानी की शुरुआत गुजरात के शक्करबाग से हुई थी, जहां उसे जंगल से पकड़ा गया था। बाद में उसे इटावा लायन सफारी लाया गया, जहां उसकी मुलाकात मरियम से हुई। दोनों की जोड़ी वहां काफी लोकप्रिय थी। गोरखपुर चिड़ियाघर में आने के बाद भी इन दोनों ने लोगों का ध्यान खींचा। लेकिन मरियम की मौत के बाद पटौदी की हालत देखकर चिड़ियाघर के कर्मचारी भी परेशान थे।
कानपुर चिड़ियाघर में पटौदी की मौत की खबर से वन्यजीव संरक्षण से जुड़े लोग चिंतित हैं। बर्ड फ्लू की आशंका ने इस घटना को और गंभीर बना दिया है। चिड़ियाघर प्रशासन अब इस बात की जांच कर रहा है कि क्या अन्य जानवरों को भी कोई खतरा है। पटौदी की मौत न केवल एक शेर की हानि है, बल्कि यह वन्यजीवों के संरक्षण और उनकी देखभाल से जुड़े सवाल भी उठाती है।
गोरखपुर और कानपुर चिड़ियाघर के कर्मचारी पटौदी और मरियम की जोड़ी को हमेशा याद रखेंगे। उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि जानवरों में भी भावनाएं होती हैं और अपने साथी के खोने का दुख उन्हें भी उतना ही प्रभावित करता है, जितना इंसानों को।